कुलिक कालसर्प योग के असर, उपाय और निवारण

कुलिक कालसर्प योग क्या होता है ?

कुलिक कालसर्प योग , कालसर्प दोष का दूसरा प्रकार है | इस दोष में विसतार से जान्ने से पहले हम यह जान लेते है की आखिर कालसर्प दोष है क्या ? काल सर्प दोष किसी भी जातक के जीवन में तब होता है जब जातक की जन्म कुंडली में सभी ग्रह राहु और केतु के बीच में धंस से जाते है | इसे इस प्रकार से देखा जाता है कि राहु और केतु ने सारे ग्रहों को निगल लिया है | इस स्थिति में जातक के जीवन में कई ऐसे मोड़ आते है जो उसे दुर्भाग्यपूर्ण लगते है | जातक की नौकरी स्थिर न होना, व्यवसाय में अपार मेहनत के बाद भी नुकसान, वैवाहिक जीवन में उथल पुथल, विवाह के संयोग में देरी, संतान सुख से वंचित रहना , परिवार में कलह, ऐसे कई भीषण दुष्प्रभाव जातक के जीवन में दिखते है |

आइये अब जानते है ग्रहों का कुंडली में दिखने का वह क्या तरीका है, जिससे काल सर्प दोष प्रकट होता है |

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कुंडली में कैसे दिखता है काल सर्प योग ?

काल सर्प दोष जातक की कुंडली में तब प्रकट होता है जब सूर्य मंडल के सातों गृह, राहु एवं केतु के बीच में आ जाते है या यूं मानिये कि राहु और केतु ने सारे ग्रहों को अपने बीच समाहित कर लिया | हमारे ज्योतिष शास्त्रों में राहु और केतु को एक सर्प की संज्ञा दी गयी है | जिसमे राहु सर्प का मुख भाग तथा केतु पूँछ वाला भाग माना जाता है | काल सर्प दोष में सभी ग्रह इन दोनों बिंदुओं राहु व केतु के बीच आ जाते है और ऐसी दशा को काल सर्प योग कहा जाता है |

राहु और केतु के बीच हर ग्रह अलग-अलग घरों में विराजमान हो सकते है | इस प्रकार से काल सर्प योग में ग्रह राहु और केतु के बीच किन घरों में है उससे काल सर्प दोष का प्रकार बदल जाएगा| ग्रहों के स्थिति के अनुसार काल सर्प योग कुल १२ प्रकार का हो सकता है | आइये जानते है इनमें से कुलिक काल सर्प दोष के बारे में |

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कुलिक कालसर्प योग

सर्वप्रथम जानते है कुंडली में उस दशा के बारे में जब कुलिक काल सर्प दोष परिलक्षित होगा |

जब जातक की जन्म कुंडली में राहु दूसरे घर में स्थित हो तथा केतु अष्टम स्थान में उपस्थित हो एवं बाकी सारे ग्रह राहु और केतु के बीच में ही हों तो कुलिक कालसर्प योग होता है।

कुलिक कालसर्प योग के असर

अब जानते है कुलिक कालसर्प योग से होने पर जातक के जीवन में कौन कौन से मुख्य कष्ट हो सकते है |

इस दोष से ग्रसित जातक अपने जीवन में अपार मेहनत के पश्चात भी कई असफलताओं से झूझते है | इन जातकों को बड़े बड़े आर्थिक नुकसान हो सकते है और इनसे इनको आर्थिक तंगी के कारण हुए तनाव का भी सामना करना पड़ता है | इनको रिश्तों में धोखा भी मिलता है | समाज में निंदा भी सहन करनी पड़ सकती है | शारीरिक व मानसिक तनाव भी इन जातकों के जीवन में बना रहा है | विवाह में रुकावट व वैवाहिक जीवन सम्बन्धी समस्याएं भी आ सकती है |

कुलिक कालसर्प योग के उपाय

  • मंगलवार को सवा रत्ती का प्राण प्रतिष्ठित त्रिकोणीय मूंगा यन्त्र तांबे के साथ दाहिने हाथ की मध्यमा उंगली में धारण करें |
  • शनिवार को हनुमान की मूर्ति के सामने सरसों के तेल से दियाबत्ती करनी चाहिए |
  • मंगलवार को एक ताम्बे का खुला ब्रेसलेट दाहिने हाथ पर पहने |
  • शनिवार को राहु यन्त्र को धारण करें |

कुलिक कालसर्प योग के जातक क्या न करें

  • बीड़ी, सिगरेट, मदिरा आदि का सेवन न करें |
  • दिन में न सोएं व आलस से दूर रहें |
  • पड़ोसियों व दोस्त मित्रों से सावधानी बरतें |

कुलिक कालसर्प योग का निवारण

यदि जातक को यह ज्ञात हो कि उसकी कुंडली में कुलिक काल सर्प दोष है तो जातक को जगह जगह भटकने से बचना चाहिए और अपने शास्त्रों में बताये निवारण का सहारा लेना चाहिए | इस निवारण के अनुसार जातक को किसी प्रसिद्ध शिव मंदिर में काल सर्प पूजा करनी चाहिए | ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार इस पूजा के लिए नासिक के समीप स्थित त्रयंबक नामक कस्बे में त्र्यम्बकेश्वर मंदिर सर्वोच्च स्थान है |

अब जबकि जातक को पूजा का स्थान पता चल गया है, जातक इस पूजा से सम्बंधित जानकारी जैसे शुभ मुहूर्त, पूजा सामग्री, दोष का प्रकार आप इस पूजा में पारंगत पंडित श्री रविशंकर जी को अपनी कुंडली भेजकर निशुल्क पा सकते है |

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Ravi Shankar Guruji

वेद शास्त्र संपन्न आचार्य श्री रवि शंकर गुरुजी इनका परिवार 120 साल से त्रिम्बकेश्वर मे काल सर्प दोष निवारण केंद्र, त्रिम्बकेश्वर मंदिर के पीछे रहेते है| गुरुजी को २५ साल का अनुभव है| गुरुजी काल सर्प पूजा मे विशारद है, उन्होने २२००० से ज़्यादा काल सर्प की पूजाए की है और सभी यजमानोको १००% संतुष्टि दी है| सभी यजमान जो काल सर्प पूजा करके जाते है उन्हे तुरंत कुछ दीनो मे अच्छे रिज़ल्ट मिलने शुरू हो जाते है|
पूरे भारत मे सिर्फ़ त्रिम्बकेश्वर मे ही काल सर्प पूजा की जाती है क्योंकि त्रिम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग की असाधारण विशेषता है, जिसमें भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान रुद्र का प्रतीक है।

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